Monday, December 3, 2012

याचना

याचना
एक कटु सत्य
जोकि
परिलक्षित हो रहा
सहस्त्र लाख
चेहरों पर बराबर
पल पल
हरपल
फिर चाहे वो
हो रोज़ी रोटी
या
आशा छोटी-मोटी सी
या के हो
स्वरूप आलिशान मे
ना तो मिटती ही
है कम्बखत
ना ही होती
स्वीकार है
किसी दायरे से
नहीं बाहर
हर स्वर मे
झलकती
सामना करती हर दंभ का
युगों युगों से
जी रही याचक
के प्राण मे
ये
याचना

Written by दीपक खत्री 'रौनक'

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