Monday, December 3, 2012

हाथ

हाथ
तेरा
मेरे हाथो मे था
यूँ लगता था कि
मैने छुपा रखी है कायनात
अपने हाथो में
मुझे गुरूर हो चला था
इसी गुरूर मे

मैने लुटा दिया
अपना चैन
अपनी नींद
अपना सब कुछ
मगर.....
फिर एक दिन
टूट गया
मेरा गुरूर भी
मेरे दिल के साथ
जब तूने बे रहमी से
झटक कर
अलग कर लिया
मेरे हाथो से
अपना
हाथ.....!

Written by दिनेश हरमन

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