Friday, December 28, 2012
अनायास
अनायास
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अनायास
ही हो जाता
है
यहाँ
सब कुछ
बहुत कुछ
कुछ
जाना सा
पहचाना सा
मगर
कभी अनजान
भी
चौंकता सा
फिर भी
सामना तो
करना ही
है
हर हाल मे
क्योंकि
यहाँ
पाना भी
खोना भी
सब कुछ
ही तो होना
है
अनायास
दीपक खत्री 'रौनक'
written by
दीपक खत्री 'रौनक'
वफ़ा
वफ़ा
==
वफ़ा
क्या खूब
शब्द है
या के
एक अहसास है
या फिर
निभाई जाने वाली
एक अदा
है ये
तुझ मे
मुझ मे
सब मे
मगर
अंदाज़-ए- अहसास
है
जुदा जुदा
मेरी वफ़ा
तेरे लिए
तेरी वफ़ा
उसके लिए
और उसकी
किसी और के लिए
नहीं कोई जनता
कब
कैसे
कहाँ
किससे
किसको
मिलेगी
ये
वफ़ा
दीपक खत्री 'रौनक'written by
दीपक खत्री 'रौनक
आइना
आइना
दिखा तुम्हेँ
दिल्ली की
सड़क पर ।
खबर अब
बर्दाशत नहीँ ।
सुर्खी बनी
संसद मेँ गूंजी ।
नहीँ बनती खबर
तो क्या
बलात्कार नहीँ ?
साकी है समाज
आबरु लुटाता साकी
और वो
रोज दिखाते
आइना ।
Written By गंभीर सिँह
Wednesday, December 5, 2012
अहम्
अहम
है कहाँ नहीं
है कहाँ नहीं
चाहे फिर वो
हो तेरा
या
मेरा हो
है सर्वत्र ये
किन्तु
नहीं है स्वीकार
किसी को
मगर
है प्रेरित हरेक
क्रिया जन मन की
इसी से
नहीं छुटता ये
किसी तरीके
किसी युक्ति से
क्यों
मै और तू
नहीं हो सकते
मुक्त
है दर्द और
ह्रास का
कारक
ये
मिटता क्यों नहीं
तेरे और मेरे
मन से
ये
हो तेरा
या
मेरा हो
है सर्वत्र ये
किन्तु
नहीं है स्वीकार
किसी को
मगर
है प्रेरित हरेक
क्रिया जन मन की
इसी से
नहीं छुटता ये
किसी तरीके
किसी युक्ति से
क्यों
मै और तू
नहीं हो सकते
मुक्त
है दर्द और
ह्रास का
कारक
ये
मिटता क्यों नहीं
तेरे और मेरे
मन से
ये
अहम्
Written by दीपक खत्री 'रौनक'
हँसी
हँसी
खुबसूरत
हर दिल अजीज
खुशबूदार
प्रेम से परिपूर्ण
हर्षोल्लास की परिभाषा
मगर
तब
जब अपनो से बिछुरते हुये
मुस्कुराना पड़ता है
परिभाषा बदल जाती है
और
हँसी
नहीं रह पाती
केवल
हँसी
Written by Shambhu sadharan
खुशबूदार
प्रेम से परिपूर्ण
हर्षोल्लास की परिभाषा
मगर
तब
जब अपनो से बिछुरते हुये
मुस्कुराना पड़ता है
परिभाषा बदल जाती है
और
हँसी
नहीं रह पाती
केवल
हँसी
समय
समय
मैं देख रहा हूँ
तुम्हारी बेरूखी
कितनी जटिलता से
बाँध रखे हो
मुझे
मेरी ही जिंदगी के साथ
खड़े कर दिये हो
संघर्ष की दीवार
तुम कहो तो हँसूँ
तुम कहो तो रो दूँ
नचा रहे हो
कठपुतलीयों की तरह
मगर
देख लेना
आने वाले समय में
तुम रह जाओगे
बीता हुआ
समय
Written by Shambhu sadharan
बाँध रखे हो
मुझे
मेरी ही जिंदगी के साथ
खड़े कर दिये हो
संघर्ष की दीवार
तुम कहो तो हँसूँ
तुम कहो तो रो दूँ
नचा रहे हो
कठपुतलीयों की तरह
मगर
देख लेना
आने वाले समय में
तुम रह जाओगे
बीता हुआ
समय
सजा
सजा
मेरे गुनाह की
कुछ ऐसे देती है
वो लङकी
कि मेरे गुनाह पर
वो कुछ नही कहती
और
उसकी खामौशी
के गर्भ से
जन्म लेता है
मेरा अपराध बोध
जो देता है मुझे
मेरे हिस्से की
सजा
Written by Dinesh harman
और
उसकी खामौशी
के गर्भ से
जन्म लेता है
मेरा अपराध बोध
जो देता है मुझे
मेरे हिस्से की
सजा
Written by Dinesh harman
Monday, December 3, 2012
याचना
याचना
एक कटु सत्य
जोकि
परिलक्षित हो रहा
सहस्त्र लाख
चेहरों पर बराबर
पल पल
हरपल
फिर चाहे वो
हो रोज़ी रोटी
या
आशा छोटी-मोटी सी
या के हो
स्वरूप आलिशान मे
ना तो मिटती ही
है कम्बखत
ना ही होती
स्वीकार है
किसी दायरे से
नहीं बाहर
हर स्वर मे
झलकती
सामना करती हर दंभ का
युगों युगों से
जी रही याचक
के प्राण मे
ये
याचना
Written by दीपक खत्री 'रौनक'
परिलक्षित हो रहा
सहस्त्र लाख
चेहरों पर बराबर
पल पल
हरपल
फिर चाहे वो
हो रोज़ी रोटी
या
आशा छोटी-मोटी सी
या के हो
स्वरूप आलिशान मे
ना तो मिटती ही
है कम्बखत
ना ही होती
स्वीकार है
किसी दायरे से
नहीं बाहर
हर स्वर मे
झलकती
सामना करती हर दंभ का
युगों युगों से
जी रही याचक
के प्राण मे
ये
याचना
Written by दीपक खत्री 'रौनक'
बस
बस !
बस एक मौका और दो
मै जानता हूँ
तुम को विश्वास है
हमपर
फिर भी
कुछ
सहमी सहमी
बस एक मौका और दो
मै जानता हूँ
तुम को विश्वास है
हमपर
फिर भी
कुछ
सहमी सहमी
बेखबर सी
इस कदर
इंकार करना
बेशक मेरे लिये
असहज होता है
क्या ये सच है कि
कुछ
अन सुलझी बातों मे आकर
आज
जो कर रही हो
उसमे
सच्चाई मात्र क्या है
बेशक
तुम्हे पता नहीं
एक बार पुछ लेना
अपने अंतर्मन से
की
कितना चाहता है
हमे
बस !
Written by रमेश राजभर
इस कदर
इंकार करना
बेशक मेरे लिये
असहज होता है
क्या ये सच है कि
कुछ
अन सुलझी बातों मे आकर
आज
जो कर रही हो
उसमे
सच्चाई मात्र क्या है
बेशक
तुम्हे पता नहीं
एक बार पुछ लेना
अपने अंतर्मन से
की
कितना चाहता है
हमे
बस !
Written by रमेश राजभर
हाथ
हाथ
तेरा
मेरे हाथो मे था
यूँ लगता था कि
मैने छुपा रखी है कायनात
अपने हाथो में
मुझे गुरूर हो चला था
इसी गुरूर मे
तेरा
मेरे हाथो मे था
यूँ लगता था कि
मैने छुपा रखी है कायनात
अपने हाथो में
मुझे गुरूर हो चला था
इसी गुरूर मे
मैने लुटा दिया
अपना चैन
अपनी नींद
अपना सब कुछ
मगर.....
फिर एक दिन
टूट गया
मेरा गुरूर भी
मेरे दिल के साथ
जब तूने बे रहमी से
झटक कर
अलग कर लिया
मेरे हाथो से
अपना
हाथ.....!
Written by दिनेश हरमन
अपना चैन
अपनी नींद
अपना सब कुछ
मगर.....
फिर एक दिन
टूट गया
मेरा गुरूर भी
मेरे दिल के साथ
जब तूने बे रहमी से
झटक कर
अलग कर लिया
मेरे हाथो से
अपना
हाथ.....!
Written by दिनेश हरमन
Sunday, December 2, 2012
जिन्दगी
जिन्दगी
सुखे पत्तों सी
कब लुढक जाय
आहट भी नहीँ
होती
...
सुखे पत्तों सी
कब लुढक जाय
आहट भी नहीँ
होती
...
पर
भ्रम का शिकार
यहाँ सभी
दोष देते
औरों को लोग
नहीं सोचते
खुद को लोग
जबकी
हकिकत से
अनजान है
जिन्दगी
भ्रम का शिकार
यहाँ सभी
दोष देते
औरों को लोग
नहीं सोचते
खुद को लोग
जबकी
हकिकत से
अनजान है
जिन्दगी
written by Ramesh Rajbhar
कतार
कतार
के मायने खास
है जीस्त मे
...
के मायने खास
है जीस्त मे
...
चूँकि ये नहीं टूटती
उम्र भर
फिर चाहे वो हो
घनी धुप मे
या
शीतल छांव मे
राशन की
बिजली, पानी
का हो बिल
चाहे हो
गुजरते पल किसी
भी दशा मे
पंक्तिबद्ध
यकीन है मुझे
मिलेगी जरुर शिवधाम
मे भी
लकड़ियों के लिए
एक लम्बी सी
कतार
written by दीपक खत्री 'रौनक'
उम्र भर
फिर चाहे वो हो
घनी धुप मे
या
शीतल छांव मे
राशन की
बिजली, पानी
का हो बिल
चाहे हो
गुजरते पल किसी
भी दशा मे
पंक्तिबद्ध
यकीन है मुझे
मिलेगी जरुर शिवधाम
मे भी
लकड़ियों के लिए
एक लम्बी सी
कतार
written by दीपक खत्री 'रौनक'
Saturday, December 1, 2012
ख्याल
ख्याल
आते है
रात भर
तेरे खनखते से सवाल पर
मुझे आवारगी से मोड़ कर
कर देते है तनहा
बहुत कुछ कह जाते है
अकेले मे
बस
किसी को नहीं कहे जाते
ये
ख्याल
written by दीपक खत्री 'रौनक'
आते है
रात भर
तेरे खनखते से सवाल पर
मुझे आवारगी से मोड़ कर
कर देते है तनहा
बहुत कुछ कह जाते है
अकेले मे
बस
किसी को नहीं कहे जाते
ये
ख्याल
written by दीपक खत्री 'रौनक'
जिन्दगी
कहा है तू
क्यु नजर नही आती
भटक रहा हु
तेरी तलाश मे
एक अर्से से
न तू गाव मे थी
न तू शहर मे है
न तू घर मे थी
न तू सफर मे है
न तू आईने मे
न तू परछाई मे
न तू बुलँदी मे
न तू गहराई मे
मै जानता हु
खत्म नही होगी
तलाश मेरी
मगर
खत्म हो जाएगी
इसी तलाश मे
एक दिन
मेरी
जिन्दगी
written by Dinesh harman
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