Wednesday, December 5, 2012

अहम्

अहम
है कहाँ नहीं

चाहे फिर वो
हो तेरा
या
मेरा हो
है सर्वत्र ये
किन्तु
नहीं है स्वीकार
किसी को
मगर
है प्रेरित हरेक
क्रिया जन मन की
इसी से
नहीं छुटता ये
किसी तरीके
किसी युक्ति से
क्यों
मै और तू
नहीं हो सकते
मुक्त
है दर्द और
ह्रास का
कारक
ये
मिटता क्यों नहीं
तेरे और मेरे
मन से
ये 
अहम् 


Written by दीपक खत्री 'रौनक'

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