Saturday, March 30, 2013

होली

होली
. . . . . . . . . . . .
होली
क्या तुम्हें पता है!
अब तक है
मेरा यार रूठा हुआ

तुमने देखा नहीं कि
तुम्हारे आने से
ना उसे कुछ हुआ
ना मुझे कुछ हुआ

फिर बेवजह क्यों शोर मचा रहे हो

क्या तुम्हारे हाथ थकते नहीं
गम के काले लिबास को रंगते रंगते

जाओ जाकर
हमारे प्रेम का रंग
मेरे यार पर
उड़ेल आओ

फिर कहूँगा
सुस्वागतम् होली

written by शम्भू साधारण

Friday, December 28, 2012

नसीब

नसीब
किसका होता
अपना ।
यह जुड़ा
उनसे
जो नहीँ हुये
कभी अपने ।
हमने
सदा कोसा
इसे
यह कभी
न दे पाया
सबूत
अपनी बेगुनाही का ।
असफलताएँ और
हमारे
अधूरे प्रयास
हमारा
नसीब ।

. . . . गंभीर सिँह  written by
. . . . गंभीर सिँह

अनायास

अनायास
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अनायास
ही हो जाता
है
यहाँ
सब कुछ
बहुत कुछ
कुछ
जाना सा
पहचाना सा
मगर
कभी अनजान
भी
चौंकता सा
फिर भी
सामना तो
करना ही
है
हर हाल मे
क्योंकि
यहाँ
पाना भी
खोना भी
सब कुछ
ही तो होना
है
अनायास

दीपक खत्री 'रौनक'

written by
दीपक खत्री 'रौनक'

वफ़ा

वफ़ा
==
वफ़ा
क्या खूब
शब्द है
या के
एक अहसास है
या फिर
निभाई जाने वाली
एक अदा
है ये
तुझ मे
मुझ मे
सब मे
मगर
अंदाज़-ए- अहसास
है
जुदा जुदा
मेरी वफ़ा
तेरे लिए
तेरी वफ़ा
उसके लिए
और उसकी
किसी और के लिए
नहीं कोई जनता
कब
कैसे
कहाँ
किससे
किसको
मिलेगी
ये
वफ़ा

दीपक खत्री 'रौनक'written by
दीपक खत्री 'रौनक

आइना

आइना
दिखा तुम्हेँ
दिल्ली की
सड़क पर ।
खबर अब
बर्दाशत नहीँ ।
सुर्खी बनी
संसद मेँ गूंजी ।
नहीँ बनती खबर
तो क्या
बलात्कार नहीँ ?
साकी है समाज
आबरु लुटाता साकी
और वो
रोज दिखाते
आइना ।

Written By  गंभीर सिँह

Wednesday, December 5, 2012

अहम्

अहम
है कहाँ नहीं

चाहे फिर वो
हो तेरा
या
मेरा हो
है सर्वत्र ये
किन्तु
नहीं है स्वीकार
किसी को
मगर
है प्रेरित हरेक
क्रिया जन मन की
इसी से
नहीं छुटता ये
किसी तरीके
किसी युक्ति से
क्यों
मै और तू
नहीं हो सकते
मुक्त
है दर्द और
ह्रास का
कारक
ये
मिटता क्यों नहीं
तेरे और मेरे
मन से
ये 
अहम् 


Written by दीपक खत्री 'रौनक'

हँसी

हँसी
खुबसूरत
हर दिल अजीज
खुशबूदार
प्रेम से परिपूर्ण
हर्षोल्लास की परिभाषा
मगर
तब
जब अपनो से बिछुरते हुये
मुस्कुराना पड़ता है
परिभाषा बदल जाती है
और
हँसी
नहीं रह पाती
केवल
हँसी
 
 
Written by Shambhu sadharan