बस !
बस एक मौका और दो
मै जानता हूँ
तुम को विश्वास है
हमपर
फिर भी
कुछ
सहमी सहमी
बस एक मौका और दो
मै जानता हूँ
तुम को विश्वास है
हमपर
फिर भी
कुछ
सहमी सहमी
बेखबर सी
इस कदर
इंकार करना
बेशक मेरे लिये
असहज होता है
क्या ये सच है कि
कुछ
अन सुलझी बातों मे आकर
आज
जो कर रही हो
उसमे
सच्चाई मात्र क्या है
बेशक
तुम्हे पता नहीं
एक बार पुछ लेना
अपने अंतर्मन से
की
कितना चाहता है
हमे
बस !
Written by रमेश राजभर
इस कदर
इंकार करना
बेशक मेरे लिये
असहज होता है
क्या ये सच है कि
कुछ
अन सुलझी बातों मे आकर
आज
जो कर रही हो
उसमे
सच्चाई मात्र क्या है
बेशक
तुम्हे पता नहीं
एक बार पुछ लेना
अपने अंतर्मन से
की
कितना चाहता है
हमे
बस !
Written by रमेश राजभर
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