Monday, December 3, 2012

बस

बस !
बस एक मौका और दो
मै जानता हूँ
तुम को विश्वास है
हमपर
फिर भी
कुछ
सहमी सहमी

बेखबर सी
इस कदर
इंकार करना
बेशक मेरे लिये
असहज होता है
क्या ये सच है कि
कुछ
अन सुलझी बातों मे आकर
आज
जो कर रही हो
उसमे
सच्चाई मात्र क्या है
बेशक
तुम्हे पता नहीं
एक बार पुछ लेना
अपने अंतर्मन से
की
कितना चाहता है
हमे
बस !

Written by रमेश राजभर

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